आलमनगर के प्राचिनतम भगवती स्थान
कोशीतक /आलमनगर मधेपुरा
आलमनगर नगर पंचायत के राजघराने परिवार के द्वारा दो शताब्दी पूर्व दुर्गा पूजा की शुरुआत की गई थी। आज भी राज घराने के प्राचीनतम भगवती स्थान में हिंदू मुसलमानों के सौहार्दपूर्ण माहौल में संपन्न करने की परंपरा कायम है। यहां प्रत्येक वर्ष नव पत्रिका अर्थात विभिन्न फलों और पेड़ों और उनके पत्तों से देवी को स्थापित किया जाता है। गौरतलब है कि चंदेल वंश की एक रियासत के रूप में प्रसिद्ध शाह आलमगीर के समय का एक रियासत जो छह परगना के नाम से प्रसिद्ध था। इस रियासत की विधि व्यवस्था शाह आलमनगर से चलाई जाती थी जिसे अब आलमनगर के नाम से जाना जाता है। इन्हीं चंदेल वंशी राजाओं द्वारा काली और दुर्गा पूजा की शुरुआत लगभग दो शताब्दी पूर्व भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन से पहले ही शुरू की गई थी। इस परंपरा को राज परिवारों के वंशजों ने अक्षुण्ण बनाए रखी है। यहां काली व दुर्गा की चंडा विधि से पुजा की जाती है पुजारी सर्वेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ सर्वेश बाबू
उग्र चंडा विधि से होती है पूजा:
किवदंती है कि पहले यहां राज्य निवास के प्रांगण में स्थित भगवती मंदिर में एक संगमरमर की 18 भुजा वाली दुर्गा की प्रतिमा स्थापित थी। प्रत्येक मंगलवार को इस मंदिर में मां काली और मां दुर्गा को छाग बलि दी जाने की परंपरा थी एक बार चंदेल राजा की पुत्री आलोपित हो गयी। जब राजा को इस बात का पता चला तो अपार दुख हुआ पुत्री मोह व लोक निंदा से व्याकुल होकर राजा दुर्गा माता की प्रतिमा के आगे पुत्री के न मिलने तक अन्न जल त्याग कर बैठ गये। इसी दौरान वह मूर्छित होकर गिर गए। कुछ समय बाद जब उन्हें होश आया तो दुर्गा की प्रतिमा से उनकी खोई हुई पुत्री का वस्त्र झूलता हुआ मिला। जिसे राजा को ये ज्ञात हो गया कि उनकी पुत्री को मां दुर्गा ने आत्मसात कर लिया है। इस वजह से मूर्ति खंडित और अपवित्र हो गई इसके बाद इस मूर्ति को जल में प्रवाहित कर दिया गया। नव पत्रिका की दुर्गा नवरात्र के सप्तमी के दिन बनाकर इनकी पूजा शुरु कर दी गई यह घटना 1862 की बताई जाती है। तत्कालीन राजा नंदकिशोर सिंह ने शीतकालीन दुर्गा की मूर्ति पूजा को बंद कर नव पत्रिका की दुर्गा बनाकर पूजा आरंभ की गयी।
तीन ही स्थानों में होती है यह पूजा
उग्र चंडा विधि से नव पत्रिका की पूजा बिहार में दरभंगा राज्य, गिद्धौर राज्य व आलमनगर राज्य में आज भी भक्ति भाव से की जाती है। लोगों का कहना है की दीप दिखाने गई राजा की पुत्री उल्टा होकर लौट गई जिससे कुपित होकर मां दुर्गा ने उन्हें आत्मसात कर लिया। आज इस खौफ से राजघराने की महिला सहमी रहती है नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा के कक्ष में राजघराने की महिला प्रवेश नहीं करती है राजघराने के सदस्य सर्वेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ सर्वेश बाबू पूजा बैठकर कठिन मां दुर्गा की उपासना का निर्वाहन कर रहे हैं राजघराने के सदस्य विशाल सिंह, रतन सिंह, विक्रम सिंह, रजनीश सिंह व चंदेल वंश के द्वारा पूजा की जाती है।
सनातन धर्म के लोगों के लिए नवरात्रि का विशेष महत्व है।
नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान माता दुर्गा की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। हर साल नवरात्रि के सातवें दिन सप्तमी तिथि पर नव पत्रिका पूजा का पर्व मनाया जाता है। नव पत्रिका पूजा का त्योहार विशेष तौर पर बंगाल, झारखंड, ओडिशा, त्रिपुरा, मणिपुर और असम के शहरों में धूमधाम से मनाया जाता है। जिसे वहां नाबा पत्रिका पूजा और कलाबाऊ पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस शुभ दिन भगवान गणेश और माता दुर्गा का पूजा की जाती है। साथ ही केला, कच्ची, हल्दी, अनार, अशोक, मनका, धान, बिल्व और जौ के पौधों की पत्तियों को एक साथ बांधकर उसकी पूजा की जाती है जिसे मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतीक माना जाता है। चलिए जानते है।
नव पत्रिका पूजा कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल सप्तमी तिथि का आरंभ 09 अक्टूबर 2024 को दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से हो रहा है। जिसका समापन अगले दिन 10 अक्टूबर 2024 को देर रात 12 बजकर 31 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर नव पत्रिका पूजा का पर्व 10 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रात: काल 05 बजकर 55 मिनट पर है। जबकि सूर्योदय सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर होगा।
कन्हैया महाराज की रिपोर्ट
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