कोशीतक/ सिंहेश्वर मधेपुरा
मंगलवार को स्थाई पौधशाला मधेपुरा में जैव विविधता प्रबंधन समितियों का आन लाईन सम्मेलन की अध्यक्षता पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रेम कुमार ने की। उन्होंने कहा हम सभी यह अच्छी तरह जानते हैं कि प्रकृति की व्यवस्थाओं से छेड़-छाड़ के दुष्परिणाम 21 वीं सदी में गंभीर रूप लेने लगे हैं। पर्यावरणीय प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन तथा जल एवं भूमि संसाधनों के अवकृष्ट होने की समस्या चिन्तनिय हो गयी है। जिनके निराकरण के लिये सभी स्तरों पर ठोस कार्रवाई की उपयोगिता पर बल दिया। इस बाबत वन क्षेत्र पदाधिकारी निरज कुमार सिंह ने बताया की यह एक व्यावहारिक तथ्य है कि किसी भी व्यवस्था या तंत्र की विविधता उसके स्थायित्व और विचलनों से उबरने की विशेष क्षमता को और शक्ति प्रदान करती है। प्राकृतिक व्यवस्थाओं में जैव विविधता का विशेष स्थान है। अनुभव तथा विज्ञान के आधार पर यह पाया गया है कि प्राकृतिक व्यवस्थाओं के संतुलन तथा स्वस्थ स्थिति के लिये जैव विविधता की भूमिका अद्वितीय रही है।
जैव विविधता के अवयव या पहलु
आप सभी जैव विविधता के विभिन्न अवयवों एवं व्यावहारिक पहलुओं से परिचित होंगे। इनमें मुख्यत वनस्पति, पेड़-पौधे, जड़ी-बूटी, घास के स्थानीय प्रजातियों की विविधता महत्वपूर्ण है। किसी भी भू-भाग में वहां के भौगोलिक परिवेश के अनुरुप प्राकृतिक अवस्था में जीव-जन्तुओं में वन्य जीवों की विविधता, पक्षियों की विविधता, जलीय जन्तुओं की विविधता, कीड़े-मकोड़े एवं सूक्ष्म जीवों की विविधता का अपना एक अलग महत्व है।
कृषि, बागवानी, पशु एवं अन्य उत्पादन व्यवस्था में जैविक विविधता
इसी प्रकार खेती तथा बागवानी के फसलों में भी विविधता बरकरार रखने की विशेष उपयोगिता है। जहा उत्पादकता में बढ़त के लिये संकर हाइब्रिड प्रजातियों की उपयोगिता विगत दशकों में पायी गयी थी। वहीं अब जलवायु परिवर्तन, सुखाड़-बाढ़ तथा अन्य पर्यावरणीय समस्याओं की परिस्थितियों में "स्थानीय देशी" प्रजातियों तथा उनकी विविधता की महत्ता बढ़ गया है। मौके पर वनपाल शैलेंद्र कुमार त्रिवारी, पल्लवी कुमारी, वन रक्षी अरविंद कुमार, अमृता कुमारी, अरूण कुमार, सुभम कुमार, रजनीश कुमार, रूपम कुमारी, दामिनी कुमारी, सुरेंद्र कुमार, कार्यालय के लेखापाल चंद्रमणि भारती, सरोज सिंह, किसान वीपीन कुमार सिंह, दिनेश यादव, शंभू यादव, मनोज यादव, कारी पासवान सहित सैकड़ों किसान मौजूद थे।