364 दिन मांस का भोग, बाल रूप की होती है पूजा। माता के दरबार में ही तांत्रिक को मिलती है सिद्धि।

मां उग्रतारा के दरबार में माथा टेकते सिंहेश्वर वासी 



कोशी तक/सिंहेश्वर मधेपुरा:- सहरसा जिला के महिषी गांव में एक सिद्ध शक्तिपीठ का मां उग्रतारा मंदिर जो 52 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। कहा  जाता है। जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ में भगवान शंकर को नही बुलाया गया था। तो सति ने यज्ञ की ज्वाला में कुद कर अपनी जान दे दि थी। उसके बाद भगवान भोलेनाथ ने माता के शोक में विक्षिप्त की तरह माता का शव कंधा पर लेकर ब्रह्मांड में विचरण करने लगे तो भगवान विष्णु से भगवान शंकर की यह हालत नही देखी गई। और सुदर्शन से माता के अंग को काट काट कर गिराने लगा। यह अंग 52 जगहों पर गिरा जो आज शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है। यहा माता का बायां आंख गिरने के कारण उग्रतारा के नाम से प्रसिद्ध है। उग्रतारा मैया का दर्शन मंदिर में रखे देवी-देवता के पौराणिक धरोहर 

लोक कथा में यह भी बताया जाता है कि 700 साल पहले माता को चीन से लाया गया था। शास्त्रों की कहानी के अनुसार, ऋषि वशिष्ठ हिमालय पर्वत पर उग्र तपस्या कर देवी को चीन से लाए थे।10 दिन के अनुष्ठान के पहले देवी ने ऋषि वशिष्ठ के सामने कुछ शर्तें रखीं थीं।  जिसके टूट जाने के बाद माता 9 वें दिन ही अंतर्ध्यान हो गईं। तब से यहां मां के बाल रूप की पूजा होती है। माता सति इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां देवी के बाल रूप, नारी स्वरुप, वृद्धा स्वरूप की पूजा होती है। कहा जाता कि मंदिर बनने से पहले भगवती खुद यहां मौजूद थीं। देवी उग्रतारा की यहां मौजूदगी होने को लेकर कई मान्यताएं भी हैं।

साल में 364 दिन पड़ती है बली। 

यहां साल के 364 दिन बलि दी जाती है, जिसका भोग मां को लगता है। सिर्फ विजयदशमी के दिन यहां बलि नहीं दी जाती है। इस मंदिर में सालों भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। पुजारी अमरकांत झा ने बताया कि 'महिषी में ही मंडन मिश्र की पत्नी विदुषी भारती से आदि शंकराचार्य का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ हुआ था। इसमें शंकराचार्य को पराजित होना पड़ा।'

तांत्रिक को यहा मिलती है सिद्धी।

मान्यता यह भी है कि यहां तंत्र साधना भी की जाती है। यहां मां के चार रूप अक्षोभ्य, उग्रतारा, नील सरस्वती और एकजटा मौजूद हैं। अगर कोई तांत्रिक तंत्र साधना की सिद्धि प्राप्त करना चाहता है तो इस स्थल पर आकर ही उसे सिद्धि की प्राप्ति होगी। वैदिक रूप से यहां मां उग्रतारा, सरस्वती और काली विराजमान हैं। यहा शक्ति साधना, तांत्रिक पुजा पद्धति और धार्मिक अनुष्ठान विशेष रूप से होते रहता है। स्थानीय मानता है या मंदिर इच्छापूर्ति और मुक्ति का मार्ग प्रदान करता है। माता उग्रतारा का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक स्थल है जहां श्रद्धालु  तंत्र साधना और देवी के उपासना से जुड़े हुए हैं। यहा तंत्र सिद्धि के लिए देश विदेश से साधक आते हैं।

पंडित मुरारी झा बताते हैं कि 'मंदिर सुबह साढ़े तीन बजे खुल जाता है। मां की पूजा-अर्चना के बाद सुबह भोग में दही, चूड़ा और सभी प्रकार की मिठाई चढ़ती है। फिर दोपहर एक बजे खीर का भोग लगता है। दोपहर 2 से 3 बजे तक मंदिर बंद रहता है। एक घंटे के बाद तीन बजे मंदिर खुल जाता है। 4 बजे मां के स्नान के बाद पूजा की जाती है। रात 9 बजे आरती होती है। इसके बाद रात 10 बजे मां को विषेश प्रसाद के रूप में बलि में चढ़ाए गए मांस, भात और दाल का भोग लगता है। अगर किसी दिन बलि प्रदान नहीं हो सकी तो माता को मछली बनाकर भोग लगाया जाता है।'

3 दिन 24 घंटे खुला रहता है मैया का दरबार।

 साल में 3 दिन मंदिर का द्वार 24 घंटे खुला रहता है। बाकी दिनों में नियमानुसार मंदिर का पट खुलता और बंद होता है। अक्टूबर माह के दुर्गा पूजा में नवमी और दशमी के साथ ही जनवरी के मकर संक्रांति पर दिन-रात मंदिर का दरवाजा बंद नहीं होता है। मौके पर बाबा सिंहेश्वर मंदिर से मैया की पुजा के लिए पहुंचे बाबा मंदिर के पुजारी लाल बाबा, रघु बाबा, सरोज सिंह, टिंकू शर्मा, राजु गुप्ता, राहुल भगत, अमर कुमार गुप्ता, रमेश कुमार, प्रशांत कुमार, रवीश कुमार, सहित कई लोग शामिल थे। 

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