कोशी तक/ सिंहेश्वर मधेपुरा
भारत एक ऐसा देश है जहां विभिन्न धर्म, संस्कृतियां और परंपराएं सह-अस्तित्व में हैं। यहा की विविधता हमारी पहचान है और यही हमारे समाज को एक अद्वितीय स्वरूप प्रदान करती है। लेकिन इस विविधता में कभी-कभी ऐसे मुद्दे भी उभरकर आते हैं जो हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर सवाल खड़ा करते हैं। हिन्दू स्कूलों में हिन्दू शिक्षकों और छात्रों द्वारा क्रिसमस का उत्सव मनाया जाना भी ऐसा ही एक मुद्दा है, जो व्यापक चर्चा और विश्लेषण की मांग करता है।
संस्कृति और परंपराओं का महत्व
हर धर्म और संस्कृति की अपनी विशेष परंपराएं और त्यौहार होते हैं, जो उनके समाज की पहचान और मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिन्दू धर्म में दशहरा, दीपावली, होली, मकर संक्रांति जैसे अनेक त्यौहार हैं, जो धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रकट करते हैं। इसी प्रकार, ईसाई धर्म में क्रिसमस यीशु मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। क्रिसमस का यह पर्व मुख्यतः ईसाई समुदाय के लिए पवित्र और सांस्कृतिक महत्व रखता है।
ग्लोबलाइजेशन और धार्मिक सहिष्णुता का प्रभाव
ग्लोबलाइजेशन और सांस्कृतिक विविधता के बढ़ते प्रभाव ने लोगों को एक-दूसरे की परंपराओं और त्यौहारों को अपनाने के लिए प्रेरित किया है। यह सहिष्णुता और सामंजस्य का प्रतीक है। लेकिन, सहिष्णुता और अनुकरण में एक बारीक अंतर होता है। हिन्दू स्कूलों में क्रिसमस का मनाया जाना, विशेषकर हिन्दू शिक्षकों और छात्रों द्वारा, सहिष्णुता से अधिक एक प्रकार का सांस्कृतिक अनुकरण प्रतीत होता है। यह न केवल हिन्दू संस्कृति की प्राथमिकताओं को कमज़ोर करता है, बल्कि बच्चों में उनकी सांस्कृतिक जड़ों से दूरी बढ़ाने का भी खतरा उत्पन्न करता है।
हिन्दू शिक्षण संस्थानों की भूमिका
हिन्दू शिक्षण संस्थानों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य छात्रों को हिन्दू धर्म, संस्कृति, और परंपराओं के बारे में जागरूक करना है। इन संस्थानों का दायित्व है कि वे अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखें और नई पीढ़ी को उसके महत्व से परिचित कराएं। यदि ये संस्थान अन्य धर्मों के त्यौहारों को प्राथमिकता देने लगते हैं, तो यह उनके मूल उद्देश्य के विपरीत हो जाता है।क्रिसमस जैसे त्यौहार का मनाना, इसके मूल धार्मिक संदर्भ को नजरअंदाज करना है, यह केवल एक सांस्कृतिक प्रदर्शन बनकर रह जाता है। यह प्रदर्शन, बच्चों को उनकी अपनी परंपराओं से जोड़ने की बजाय उन्हें विदेशी सांस्कृतिक प्रभावों के प्रति आकर्षित करता है।
समाज में सांस्कृतिक बदलाव और पहचान संकट
भारत जैसे बहु धार्मिक समाज में किसी भी संस्कृति का पूरी तरह से विलुप्त होना असंभव है, लेकिन धीरे-धीरे उसकी प्राथमिकताओं में बदलाव अवश्य हो सकता है। हिन्दू स्कूलों में क्रिसमस मनाने जैसी घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि हिन्दू समाज अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर असमंजस में है।यह बदलाव केवल स्कूलों तक सीमित नहीं है। यह हमारे समाज में एक व्यापक प्रवृत्ति बनती जा रही है। भारतीय परिवारों में भी क्रिसमस ट्री सजाने, सांता क्लॉज़ बुलाने और उपहार बांटने जैसे कार्य तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। यह सब हमारे समाज में पनप रहे सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के लिए संकट का प्रतीक है।
धार्मिक उत्सव और उपभोक्तावाद
क्रिसमस केवल एक धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर यह एक बड़े व्यावसायिक उत्सव के रूप में बदल चुका है। बाजारों में क्रिसमस से संबंधित वस्तुओं की बिक्री और प्रचार-प्रसार इस त्यौहार को लोकप्रिय बनाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। हिन्दू स्कूलों में क्रिसमस का मनाया जाना, कई बार बच्चों के लिए उपभोक्तावादी संस्कृति को प्रोत्साहित करता है, जहां त्यौहार केवल सजावट और उपहारों तक सीमित रह जाते हैं।
क्या किया जाना चाहिए?
हिन्दू स्कूलों को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक प्राथमिकताओं को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
1. अपनी परंपराओं को महत्व देना
हिन्दू त्यौहारों और परंपराओं को प्राथमिकता देकर उन्हें बच्चों के लिए अधिक आकर्षक और अर्थपूर्ण बनाया जाए।
2. सांस्कृतिक जागरूकता
छात्रों को विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बारे में जानकारी दी जाए, लेकिन इसे इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए कि वे अपनी संस्कृति के प्रति गर्व महसूस करें।
3. धार्मिक सहिष्णुता और अनुकरण में अंतर
छात्रों को यह सिखाया जाए कि अन्य धर्मों का सम्मान करना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि अपनी पहचान को कमज़ोर किया जाए।
4. शिक्षकों की भूमिका
शिक्षकों को अपनी भूमिका समझनी चाहिए और बच्चों में उनकी सांस्कृतिक जड़ों के प्रति लगाव बढ़ाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
निष्कर्ष
हिन्दू स्कूलों में हिन्दू शिक्षकों और छात्रों द्वारा क्रिसमस मनाया जाना एक ऐसा मुद्दा है। जो हमारे समाज में सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के महत्व को समझने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। सहिष्णुता और विविधता को अपनाना महत्वपूर्ण है, लेकिन अपनी परंपराओं और मूल्यों की कीमत पर नहीं। हिन्दू शिक्षण संस्थानों को अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और नई पीढ़ी को इससे जोड़ने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए।
सच्ची सहिष्णुता वही है, जो अपनी पहचान को बनाए रखते हुए दूसरों का सम्मान करना सिखाए।
विपक्ष के तर्क
यह सवाल कई लोगों के मन में उठता है, खासकर जब यह हिन्दू स्कूलों की बात आती है। यहा कुछ तर्क दिए गए हैं जो बताते हैं कि हिन्दू स्कूलों में क्रिसमस मनाना क्यों उचित हो सकता है:
सांस्कृतिक आदान-प्रदान और समझ
1. सांस्कृतिक आदान-प्रदान: क्रिसमस मनाने से हिन्दू छात्रों को ईसाई धर्म और संस्कृति के बारे में जानने का अवसर मिलता है, जो सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है।
2. सहिष्णुता और सम्मान: क्रिसमस मनाने से हिन्दू समुदाय ईसाई धर्म के प्रति सहिष्णुता और सम्मान दिखाता है, जो एक धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए आवश्यक है।
शिक्षा और जागरूकता
1. धार्मिक जागरूकता: क्रिसमस मनाने से हिन्दू छात्रों को ईसाई धर्म के बारे में जानने का अवसर मिलता है, जो उनकी धार्मिक जागरूकता को बढ़ाता है।
2. इतिहास और संस्कृति की शिक्षा: क्रिसमस मनाने से हिन्दू छात्रों को ईसाई धर्म के इतिहास और संस्कृति के बारे में जानने का अवसर मिलता है, जो उनकी शिक्षा को समृद्ध बनाता है।
सामाजिक एकता और मित्रता
1. सामाजिक एकता: क्रिसमस मनाने से हिन्दू और ईसाई समुदायों के बीच सामाजिक एकता को बढ़ावा मिलता है।
2. मित्रता और सहयोग: क्रिसमस मनाने से हिन्दू और ईसाई छात्रों के बीच मित्रता और सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिन्दू स्कूलों में क्रिसमस मनाने का उद्देश्य हिन्दू धर्म की जगह ईसाई धर्म को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सहिष्णुता, और सामाजिक एकता को बढ़ावा देना है।
लेखक जितेन्द्र कुमार
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