ऐ मेरे वतन के लोगों जरा याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर ना आए

आलमनगर का शहीद स्मारक शहीदों की कुर्बानी की याद ताजा करती 


कोशीतक / आलमनगर मधेपुरा


शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा। आज अपने प्राणों की आहुति देकर अगस्त क्रांति को धार देने वाले उन स्वतंत्रता सेनानी को हम याद कर रहे हैं। 12 जनवरी 1914 को स्वतंत्रता सेनानी शोभा कांत झा का जन्म आलमनगर के एक किसान परिवार में हुआ था। 1930 ईस्वी में उन्होंने कुर्सेला स्थित उच्च विद्यालय में पढ़ाई करते थे। उसी दौरान महात्मा गांधी के साथ देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थें। उन्होंने महात्मा गांधी के साथ थाना बिहपुर की घटनाओं में अन्य साथियों के साथ कूद पड़े थे। जिसमें कुरसंडी निवासी भागवत ठाकुर करामा निवासी सिंघेश्वर झा, सत्यदेव मिश्रा आलमनगर के सोने लाल झा एवं मेदनी चौधरी, बम भोली झा आदि कई साथियों के साथ 29 अगस्त 1942 के दिन स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने दिन में  मनोहर हाई स्कूल पूर्व में हैलेट इन्स्टीट्यूट को बंद कराया। सभी छात्रों के साथ साथ उन्हें शिक्षकों का भी साथ मिला। इस तरह के सहयोग की लोग प्रतीक्षा ही कर रहे थे और यह काफिला आगे बढ़ते गया। भारत माता के सपूत अपने नेताओं के मार्गदर्शन में सभी छात्र समर्थक अंग्रेज भारत छोड़ो और भारत माता की जय का नारा लगाते आगे बढ़े इन लोगों के अलावा इस घटना को एक अभूतपूर्व घटना मानते हुए देश प्रेमियों का भरपूर समर्थन मिला। और रेलवे क्रॉसिंग से लेकर स्टेशन के सामने तक आंदोलनकारियों की भीड़ लग गई। कुछ देर तक शांत रहने के बाद आंदोलनकारियों ने सरकार की जड़ को काटने की ख्याल से तोड़फोड़ प्रारंभ कर दिया। सबसे पहले टेलीफोन तार लाइन काटे गए फिर रेल की पटरिया को कई जगह पर उखाड़ लिया गया ताकि आया हुआ टॉमी साहब खजाना के साथ भाग नहीं पाए। ना ही वह बाहर से और सिपाही या सेना को बुला पाए। छात्र जन सेना ने देखते ही देखते सहरसा रेलवे स्टेशन को भी सभी और से अन्य मार्गों से भी संवाद संचार के साधनों से अलग कर दिया। मोर्चे के दूसरे छोड़ पर स्टेशन के सामने भी जनसमूह तैनात थी। और अंग्रेज भारत छोड़ो भारत माता की जय महात्मा गांधी जिंदाबाद आदि नारा लगातार गुंजते रहे। मोर्चे के इस छोड़ पर बड़े नेताओं का मार्गदर्शन कार्यकर्ताओं को प्राप्त था। इधर तथा कथित टॉमी साहब एवं उनके सिपाहियों ने मोर्चे ले लिया। और मोर्चे के इस शांत समूह पर धड़ाधड़ मशीन गंज तथा बंदूक से गोलियां चलाना शुरू कर दिया। गोलियों की आवाज दाएं और खनक जो गोलियां बगल में लगी मालगाड़ी के डिब्बे में लगती थी। वहां खलबली मच गई कई लोगों ने अपने को मालगाड़ी के पीछे पहुंचकर मोर्चे को संभाला। वही रमेश झा के साथ उनके पिता भी थे जिन्होंने उनसे कहा कि पागल हो गए हो क्या देख नहीं रहे हो गोली चल रही है। लेकिन रमेश झा एवं उनके साथियों उसकी परवाह नहीं की और उन्होंने कहा कि भारत मां के सपूत को कोई छू भी नहीं सकता है मारने की बात तो दूर की है। इस तरह डरने से आजादी के दीवानों पर अंग्रेजी सरकार को और छूट कर कहर  ढाने का अवसर मिलेगा इतने के साथ कोई छोटे से पत्थर सी चीज आई और उनके इर्द-गिर्द टकराई उन्होंने अपने बाय आंखों को पकड़कर दबाया और आंख रंगने का प्रयास किया तभी अन्य साथी ने पूछा क्या हुआ कहीं छर्रा की टुकड़ी तो नहीं लगी वहीं शोभा कांत झा ने जवाब दिया नहीं तो  कुछ धूल कण पर गए हैं ठीक हो जाएंगे और हाथ हटाते हुए उस और देखने का यकीन किया जिस तरफ से गोलियां बरस रही थी आंख लहू के सम्मान लाल हो गई थी। कुछ देर बाद लोगों ने देखा की गोलियां शांत हो गई कुछ लोगों ने अनुमान लगाया कि गोलियां समाप्त हो गई या फिर कुछ नरम सिपाहियों ने गोलियां चलाने से इंकार कर दिया। यह देखकर टॉमी साहब भी अपनी मशीन गंज लेकर भीतर चला गया। पुनः एकजुट होकर तोड़फोड़ का बचा समान लोग ले गए इतने में एक क्रांतिकारी कराहते हुए अपने साथियों के पास आया। अपने गुप्त स्थानों के ऊपर से हाथ हटाते हुए कहा हमें गोली लग गई है इतना कह कर वह नीचे गिर पड़े। साथियों ने पूछा और किस-किस को गोली लगी है वह लोग कहां है लेकिन कोई आवाज ना पाकर साथियों ने समझा कि घायल क्रांतिकारी शहीद हो गया है। साथियों ने उन्हें प्रणाम किया और धन्यवाद भी दिया तभी फिर एक क्रांतिकारी कराते हुए लगाते हुए पहुंचे उन्होंने कराहते हुए कहा मुझे भी पैर में गोली लगी है। पैर में जिन्हें गोली लगी थी उसकी गोली को तत्काल निकालकर कपड़े से पट्टी के समान जख्म को बांध दिया तभी बिहारीगंज से कुछ जानकारी मिलने पर उन्होंने बिहारीगंज के स्टेशन पर तोड़फोड़ शुरू कर दिया। मधेपुरा जिले के कितने ही सेनानियों ने अपने अपने दम पर आज गुलामी से मुक्ति दिलाई है। और कितनों ने देश  को आजाद कराने के लिए शहीद हो चुके हैं। 

आलमनगर से कन्हैया महाराज का संदेश।

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