सिंहेश्वर को विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए उत्साहित हैं सिंहेश्वर वासी।

Dr.I C Bhagat
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बाबा सिंहेश्वर नाथ का कामना लिंग, पहला शिव लिंग जिसे बिष्णु ने स्थापित किया
बाबा सिंहेश्वर नाथ और श्रीराम का अनुपम और गौरवशाली भव्य मंदिर 


कोशीतक/ सिंहेश्वर मधेपुरा 


सिंहेश्वर धाम को विश्व पटल पर लाने की कवायद को लेकर मंगलवार को फिर एक बार अशोक वाटिका में सिंहेश्वर वासियों की एक बैठक मनोज भगत की अध्यक्षता में हुई। जिसमें इस कार्यक्रम की महत्ता को लेकर विस्तार से चर्चा की गई। साथ ही इस कार्यक्रम के  लिए 7 सितंबर को सिंहेश्वर की कलशयात्रा को वृहत रूप देने के लिए हर दिशा, हर गांव, हर मुहल्ला और हर घर से कलशयात्रा में एक मुहिम के तरह लोग जुड़े ताकि सिंहेश्वर को भगवान के जन्म के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ स्थल को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल सके। इसके लिए हर गांव से उस गांव के लोगों को अधिक से अधिक माता बहनों को कलशयात्रा से जोड़ने के लिए उसके गांव में जाकर लोगों को जागरूक करने का एक रोड मैप तैयार किया गया। साथ ही सिंहेश्वर नगर पंचायत में सुबह 7 से 9 बजे तक हर घर में जाकर कार्यक्रम से लोगों को जोड़ने के लिए जन संपर्क अभियान चलाया जाएगा। सिंहेश्वर को विश्व पटल पर लाने के लिए हुई सिंहेश्वर वासियों की बैठक 

एक नजर भगवान राम से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य।

सिंहेश्वर स्थान पौराणिक कथा के अनुसार, राजा दशरथ ने अपने चार पुत्रों - राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के जन्म के लिए सिंहेश्वर स्थान में पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था। यह यज्ञ भगवान राम के जन्म की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जो हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है। राजा दशरथ, जो अयोध्या के राजा थे, को अपने वंश के लिए कोई पुत्र नहीं था। उन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ की सलाह पर पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने का फैसला किया। जो एक विशेष प्रकार का यज्ञ है जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है।

सिंहेश्वर पुत्रेष्टि यज्ञ स्थली के रूप में जाना जाता है।

सिंहेश्वर घाम जो बिहार में स्थित है, को इस पुत्रेष्टि यज्ञ का स्थल माना जाता है। यहा पर राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था और भगवान राम सहित चार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। सिंहेश्वर स्थान पर एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है जो भगवान राम को समर्पित है। यह मंदिर पौराणिक कथा के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। और हर साल यहा पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। पौराणिक कथा के माध्यम से, हमें भगवान राम के जन्म की कहानी के बारे में पता चलता है।

पुत्रेष्टि यज्ञ कैसे हुआ था:- 

राजा दशरथ ने अपने गुरु वशिष्ठ से पुत्र प्राप्ति के लिए परामर्श लिया।

वशिष्ठ ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह दी।

राजा दशरथ ने सिंहेश्वर स्थान में पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया।

यज्ञ के दौरान, अग्नि से एक प्रकट हुआ जिसमें एक स्वर्णिम पात्र था।

उस पात्र में एक प्रसाद था जिसे राजा दशरथ की तीन रानियों - कौशल्या, कैकेई और सुमित्रा ने खाया।

इसके परिणामस्वरूप, राजा दशरथ को चार पुत्र हुए - राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न।

पुत्रेष्टि यज्ञ कब हुआ था:-

पुत्रेष्टि यज्ञ का समय पौराणिक कथाओं में वर्णित है, लेकिन इसका सटीक समय नहीं बताया गया है।

यह कथा त्रेता युग में घटित हुई थी, जो हिंदू धर्म में चार युगों में से एक है।

पुत्रेष्टि यज्ञ कौन किया था:

पुत्रेष्टि यज्ञ राजा दशरथ ने करवाया था।

इसका मुख्य पुरोहित वशिष्ठ थे, जो राजा दशरथ के गुरु थे।

श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह एक महान ऋषि और यज्ञविद् थे, जिन्हें यज्ञों के विशेषज्ञ के रूप में जाना जाता था।

श्रृंगी ऋषि का महत्वपूर्ण काम यह था

उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन और संचालन किया था।

उन्होंने यज्ञ के दौरान मंत्रों का उच्चारण किया और यज्ञ की प्रक्रिया को पूरा किया।

उन्होंने अग्नि से प्रकट हुए प्रसाद को तैयार किया, जिसे राजा दशरथ की तीन रानियों ने खाया था।

उन्होंने यज्ञ के परिणामस्वरूप पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना की और राजा दशरथ को आशीर्वाद दिया।

श्रृंगी ऋषि की भूमिका के कारण ही पुत्रेष्टि यज्ञ सफल हुआ और राजा दशरथ को चार पुत्र हुए। उनकी यज्ञविद्या और मंत्रों की शक्ति ने यज्ञ को सफल बनाया और राजा दशरथ की इच्छा पूरी की।

श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ का मुख्य स्थल सिंहेश्वर स्थान माना जाता है, जो बिहार में स्थित है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रृंगी ऋषि ने राजा दशरथ के अनुरोध पर पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन किया था। उन्होंने यज्ञ के लिए एक उपयुक्त स्थल की तलाश की और सिंहेश्वर स्थान को चुना, जो एक पवित्र और शक्तिशाली स्थल माना जाता था।सिंहेश्वर स्थान पर, श्रृंगी ऋषि ने यज्ञ का आयोजन किया और यज्ञ की प्रक्रिया को पूरा किया। यज्ञ के दौरान, उन्होंने मंत्रों का उच्चारण किया और अग्नि से प्रकट हुए प्रसाद को तैयार किया, जिसे राजा दशरथ की तीन रानियों ने खाया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए सात पोखरों का निर्माण करवाया था, जो सतोखर के नाम से प्रसिद्ध हुए। ये पोखर यज्ञ के लिए पवित्र जल का स्रोत थे, और इनमें स्नान करने से यज्ञ की प्रक्रिया को पूरा करने में मदद मिली।

सतोखर के सात पोखरों का महत्व यह है:-

ये पोखर पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए पवित्र जल का स्रोत थे।

इनमें स्नान करने से यज्ञ की प्रक्रिया को पूरा करने में मदद मिली।

ये पोखर श्रृंगी ऋषि द्वारा निर्मित किए गए थे, जिन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन किया था।

सतोखर के पोखर आज भी सिंहेश्वर स्थान में स्थित हैं और पौराणिक महत्व के स्थल के रूप में पूजे जाते हैं।

इस प्रकार, सिंहेश्वर के सात पोखर यानी सतोखर पुत्रेष्टि यज्ञ से गहरा संबंध रखते हैं और पौराणिक कथाओं में उनका महत्वपूर्ण स्थान है।

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