पुख्ता सबूत के वाबजूद कानून के हाथ को रसूखदारों तक पहुंचने में ये लोग राह में बन रहे हैं रोड़ा
कोशी तक/आलमनगर मधेपुरा
पुख्ता सबूत के रहते यदि भेजे गए रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन कारवाई की होती तो इसका फलाफल मिल जाता किंतु पुलिस एवम वन प्रशासन को इस सारी घटनाक्रम की जानकारी होने के बाबजूद इनका क्षेत्र उनका क्षेत्र का रट लगाए जा रहा है। पुख्ता सबूत के वाबजूद कानून के हाथ को रसूखदारों तक पहुंचने में ये लोग हीं राह में रोड़ा बन रहे हैं । सूत्र तो यह भी बताते हैं टेंट तो आलमनगर क्षेत्र हर जोड़ा घाट पर गड़ी हुई थी। स्थानीय पुलिस को इस सारी घटनाक्रम की जानकारी है लेकिन वह अपना मुंह बंद किए हुए हैं। प्रश्न यह है कि अगर चिड़िया का शिकार भागलपुर में हुआ तो टेन्ट मधेपुरा जिले में क्यों गड़ा हुआ था। और उसी टेंट में प्रतिबंधित पक्षियों को पकाया और खाया गया। यहां तक कि भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ का भी वध कर उसका मांस भक्षण किया गया। बता दें कि विश्व में तीसरा और भारत में दूसरा गरुड़ के प्रजनन क्षेत्र गरुड़ों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। उदाकिशुनगंज अनुमंडल मुख्यालय थाना में स्थित शैमल एवं पिपल के वृक्ष पर भी है इनका डेरा है।
नवगछिया अनुमंडल का कदवा क्षेत्र के मौसम में बड़े-बड़े बरगद व पीपल के पेड़ों पर अपना डेरा जमाये दर्जनों गरुड़ मटरगश्ती करते देखे जा रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में करीब 16 सौ गरुड़ों में 600 सिर्फ कदवा में हैं। इन गरुड़ों की खासियत है कि यह पेड़ पौधों में कीड़े नहीं लगने देते। ये कीड़े-मकोड़ों, फसल बर्बाद करने वाले चूहों को भी खा जाते हैं।
वन विभाग के अनुसार, कदवा क्षेत्र विश्व का तीसरा व भारत का दूसरा प्रजनन स्थल है। ठंड के मौसम में बड़े-बड़े बरगद व पीपल के पेड़ों पर अपना डेरा जमाये दर्जनों गरुड़ मटरगश्ती करते दिखते हैं। भागलपुर के लोग गरुड़ को भगवान स्वरूप मानते हैं। सरकार गरुड़ों के लिए सालाना 40 लाख रुपये खर्च करती है। भागलपुर के सुंदरवन में गरुड़ पुनर्वास केंद्र बनाया गया है। यह दुनिया का एक मात्र गरुड़ पुनर्वास केंद्र है। यहां बीमार गरुड़ों का इलाज भी किया जाता है।
स्थानीय लोगों की मानें तो गरुड़ों के लिए यहां का वातावरण अनुकूल है। यहां इनकी पूजा की जाती है। देश के कई हिस्सों से लोग गरुड़ को देखने कदवा पहुंचते हैं। पहले गरुड़ के लिए कंबोडिया के नाम से जाना जाता था। अब भागलपुर का नाम गरुड़ के लिए भी जाना जाता है। वहीं भागलपुर वन एवं पर्यावरण विभाग के चिकित्सा पदाधिकारी डा. संजीत ने बताया कि इस गरुड़ का कम्बोडिया, असम के अलावा कदवा क्षेत्र में प्रजनन केंद्र है। स्थानीय लोग गरुड़ की रक्षा करते हैं। उन लोगों को हर वर्ष सम्मानित भी किया जाता है। बता दें कि असम में सबसे ज्यादा गरुड़ पाए जाते थे लेकिन भागलपुर ने असम को भी मात दे दी है। 2006 के बाद की बात करें तो गरुड़ों की संख्या यहां 9 से 10 गुना तक बढ़ी है. इन गरुड़ों ने भागलपुर एवं मधेपुरा का नाम विश्व के भौगोलिक मानचित्र पर अमिट छाप छोड़ी है। लेकिन हर जोरा घाट की घटना ने हमें विश्व में मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ा है। इन शिकारियों ने अगर शिकर भागलपुर में हुआ तो टेंट एवं बरवाला का डांस मधेपुरा जिले में हुआ था । आलमनगर थाना क्षेत्र के हर जोरा जोकि रतवारा ओपी के अंतर्गत आता है वहां की पुलिस अब तक सोई हुई है चिंता का विषय है इसलिए पर्यावरण प्रमियों ने मधेपुरा के जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक से अनुरोध किया है कि इस कुकृत्य में शामिल व्यक्तियों के ऊपर विधि सम्मत कार्रवाई एवं उनके हथियारों के लाइसेंस रद्द किया जाए। साथी जिला पदाधिकारी महोदय एवं आरक्षी अधीक्षक महोदय जांच टीम बनाकर घटनास्थल पर भेजें दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। वन विभाग के पदाधिकारी ने जो रिपोर्ट सौंपी है उनकी भी जांच होनी चाहिए गरुड़ का एवं नील गाय फोटो उन्होंने रिपोर्ट में क्यों नहीं शामिल किया।
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