सिंहेश्वर मधेपुरा
कानूनों की यातना से अधिक बुरी वेदना नही होती हैं। यह कहना असम्भव है कि कानून कहा समाप्त होता है तथा न्याय कहा आरम्भ होता हैं। ये कथन एक प्रश्न चिन्ह है इसी कथन को ध्यान में रखकर न्याय प्रणाली में बदलाव जरूरी है। इन बदलावों को क्रांति भी कहा जा सकता है। और बदलाव जीवन में हो या न्याय प्रणाली में सुधार करना चाहिए। इस मसले पर आलमनगर निवासी सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता गौतम कुमार सिंह ने अपने विचार रखे हैं। उन्होंने बताया कि भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है। जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन 26 नवम्बर भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है। जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संविधान का संशोधन भारत के संविधान में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है। एक संशोधन के प्रस्ताव की शुरुआत संसद में होती है। जहा इसे एक बिल के रूप में पेश किया जाता है।मानसून सत्र का 11 अगस्त को आखिरी दिन था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 3 नए बिल, भारतीय न्याय संहिता बिल, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल, भारतीय साक्ष्य अधिनियम बिल सदन में पेश किए। सदन में हंगामे के बीच इस मानसून सत्र में राज्यसभा और लोकसभा में कुल 23 विधेयक पारित हुए। इन विधेयकों में 'दिल्ली सर्विस बिल' जैसे महत्वपूर्ण बिल भी शामिल है। केंद्र सरकार अंग्रेजों के जमाने के कुछ कानूनों में संशोधन करने जा रही है। इसके लिए सरकार दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक 2023 लाएगी। इसकी जानकारी लोकसभा में देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 'आज मैं जो तीन विधेयक एक साथ लेकर आया हूं, वे सभी पीएम मोदी के पांच प्रणों में से एक को पूरा करने वाले हैं। इन तीन विधेयक में एक है :- इंडियन पीनल कोड, दुसरा है :- क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, तीसरा है:- इंडियन एविडेंस कोड। इंडियन पीनल कोड 1860 की जगह अब भारतीय न्याय संहिता 2023 होगा। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 प्रस्थापित होगा। और इंडियन एविडेंट एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम प्रस्थापित होगा।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल मौजूदा इंडियन पीनल कोड 1860 आईपीसी की जगह लेगी। भारतीय साक्ष्य बिल मौजूदा एविडेंस एक्ट की जगह लेगी। भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023 मौजूदा कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर 1898 सीआरपीसी की जगह लेगी। आईपीसी में पहले 511 धाराएं थी। उसे बदलकर अब सिर्फ 356 धाराएं कर दी गई है। आईपीसी की जगह लेने वाले इस प्रस्तावित बिल में 175 धाराओं में बदलाव किया गया है। 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है। सरकार का कहना है कि इन बिलों को मौजूदा समय के अहमियत के हिसाब से पेश किया गया है। इसमें आईपीसी और सीआरपीसी की कई धाराओं में बदलाव करने का प्रस्ताव रखा गया है। इन बिलों में बदलाव इसलिए किया गया क्योंकि सरकार गुलामी के दौरान बनाई गई ब्रिटिश के कानूनों में मौजूदा वक्त के हिसाब से परिवर्तन लाना चाहती है। इन तीनों ही बिलों को लोकसभा सत्र के आखिरी दिन संसद की स्थाई समिति को रिव्यू के लिए भेज दिया गया है। और इसे कानून बनाने के लिए शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किया जाएगा।
भारतीय न्याय संहिता में क्या बदला?
देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों, हत्याओं को लेकर कानून बनाने को लेकर प्राथमिकता दी गई है। भारतीय नागरिक संहिता बिल सीआरपीसी की जगह लेगी। इस बिल में कुल 533 धाराएं रहेंगी। भारतीय नागरिक संहिता बिल में सीआरपीसी के 160 धाराओं में बदलाव किए गए हैं। 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं। और 9 धाराओं को खत्म कर दिया गया है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल 2023 में कितनी धाराएं बदली?
भारतीय न्याय संहिता आईपीसी की जगह लेगी। आईपीसी में पहले 511 धाराएं थी उसे बदलकर अब सिर्फ 356 धाराएं कर दी गई है। आईपीसी की जगह लेने वाले इस प्रस्तावित बिल में 175 धाराओं में बदलाव किया गया है। 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं। और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है।
साक्ष्य बिल, 2023 में कितनी धाराएं बदली?
एविडेंट एक्ट की जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य विधेयक में पहले की 167 धाराएं थी। लेकिन अब 170 धाराएं होंगी। 23 धाराओं में बदलाव किया गया है। 1 नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है।
आईपीसी और सीआरपीसी के नए वर्जन क्या क्या हुए बड़े बदलाव।
राजद्रोह हटाया गया
बिल के प्रस्ताव को पेश करते हुए केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा कि देशद्रोह के कानून को रद्द किया जाएगा। कारण ये है कि हमारा देश लोकतांत्रिक देश है और यहां हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है।हालांकि राजद्रोह हटा दिया गया है। लेकिन नए प्रावधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति इरादतन या जानबूझकर अपने बोलने, लिखने, संकेत देने से अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को उकसाता की कोशिश करता है या देश की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने का प्रयास करता है। या उस काम में शामिल होता हो तो ऐसी स्थिति में आरोपी को कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा आजीवन कारावास सजा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म की सजा
अगर यह बिल कानून की शक्ल लेता है। तो नाबालिग बच्चे के साथ दुष्कर्म करने पर मौत की सजा देने का प्रावधान है। किसी महिला से गैंगरेप करने पर 20 साल तक की जेल की सजा मिल सकती है।
प्यार के नाम पर धोखा संगीन जुर्म।
नए प्रस्तावित बिल के अनुसार किसी भी महिला के साथ प्यार-मोहब्बत के नाम पर धोखेबाजी करना संगीन जुर्म माना जाएगा। अगर कोई भी व्यक्ति अपनी धार्मिक पहचान छुपा कर किसी महिला से शादी करने की कोशिश करता है या शादी करता है तो उसे 10 साल की सजा भुगतनी होगी। इसके अलावा कोई भी पुरुष किसी भी महिला के साथ शादी का वादा कर, प्रमोशन दिलवाने का वादा कर या नौकरी दिलाने का झूठा वादा कर संभोग करता है। तो ऐसी स्थिति में उसे कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान है।
मॉब लिंचिंग पर सजा
इस प्रस्तावित विधेयक में मॉब लिंचिंग को हत्या से जोड़ा गया है। विधेयक के अनुसार जब 5 या 5 से ज्यादा लोगों समूह साथ मिलकर किसी का नस्ल, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधार पर हत्या करता है। तो ऐसी स्थिति में इस अपराध में शामिल हर व्यक्ति को मौत या कारावास से दंडित किया जाएगा। इसमें न्यूनतम सजा 7 साल और अधिकतम मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।
आतंकवाद को किया गया परिभाषित।
भारतीय न्याय संहिता के तहत पहली बार आतंकवाद शब्द की परिभाषा बताई गई है जो की वर्तमान में आईपीसी में शामिल नहीं था।
स्नैचिंग पर सजा
भारतीय न्याय संहिता में धारा 302 के अनुसार स्नैचिंग को लेकर एक नया प्रावधान किया गया है। इसमें बताया गया है कि जो कोई भी व्यक्ति स्नैचिंग करते हुए पकड़ा जाता है तो उसे तीन साल तक की कैद की सजा और जुर्माना देना होगा।
रेप पीड़िता की पहचान बताना अपराध।
नए कानून में किसी भी रेप पीड़िता की पहचान को सबके सामने लाने वालों पर भी सजा का प्रावधान है। दरअसल धारा 72. (1) के तहत कोई भी व्यक्ति रेप पीड़िता का नाम या कोई भी ऐसी चीज सबके सामने लाता है। जिससे पीड़िता को पहचाना जाए। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति के खिलाफ धारा 63 से 68 तक सजा दी जा सकती है। आरोपी को किसी भी अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा। जिसे 2 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
कोर्ट होंगे डिजिटलाइजेशन
नए प्रावधानों के अनुसार आने वाले समय में एफआईआर लिखने से जजमेंट तक सभी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी। गृहमंत्री ने इसे पेश करते वक्त कहा कि साल 2027 तक देश के सभी कोर्ट को डिजिटाइज कर दिया जाएगा। ताकि कहीं से भी जीरो एफआईआर रजिस्टर किया जा सके। इसके अलावा किसी की भी गिरफ्तारी के साथ ही उसके परिवार को भी सूचित कर दिया जाएगा। 180 दिन के जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेजना होगा। ये नए न्याय व्यवस्था लागू करने का आगाज़ है। लेकिन जहां तक मेरा अनुमान है ये अब नए साल ही लागू होगा।
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